कभी तो ऐसा लगता है कि जिन्दगी अपना पूरा हक मांगती है, लेकिन टुकड़ों में जीता आदमी उसका यह हक कैसे अदा करे। जिनको एक पल जीने के लिए कई बार मरना पड़ता है और जिन्दगी एक बोझ सी लगने लगती है, उनके बीच रह कर उन का उत्साह बढाने के बारे में सोच रहा हूँ। सोच रहा हूँ के उन के बोझ को हल्का करने कि क्या तदबीर हो सकती है? यही हो सकता है के उनमे जिंदगी से मोहब्बत पैदा कि जाए, ताकि जो भी पल जीयें मस्त और मज़े से जियें ।
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