बीता नहीं था कल
(कहानी) शाम के लगभग 5 बज रहे थे। कॉलोनी के कुछ लोग स्ट्रीट के दोनों तरफ वाकिंग कर रहे थे। मैं स्ट्रीट के कोने में लगी एक सीमेंट की बेंच पर बैठा सुस्ता रहा था। पैरों की उंगलियों को देखते हुए सोच रहा था कि नाखुन बढ़ गये हैं , आज ही इसे काटना होगा। इतने में एक आवाज़ कानों में पड़ी। " अंकल , क्या आप यह एड्रेस बता सकते हैं ?" पूछने वाले को बिना देखे ही मैंने उसके हाथ से परची ली और पढ़ने लगा। स्ट्रीट नंबर चार... अरे ! ... मेरी हैरत की इंतहा न थी। ये तो मेरे ही घर का पता था। नाम और मकान नंबर के साथ। चेहरा उठाकर पूछने वाले को देखा तो अपनी ही आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। बिल्कुल वही चेहरा , वहीं आँखें , नयन नक़्श में उससे उन्नीस-बीस तलाश करना मुश्किल था। ऐसा कैसे हो सकता है। सोलह सत्रह साल की एक लड़की जीन्स टी शर्ट में पीठ पर बैग लटकाए और हाथ में एक बड़-सा सूटकेस पकड़े मेरे सामने खड़ी थी। वही लड़की जिसे मैं बीस साल पहले आखिरी बार एयरपोर्ट छोड़ आया था। मैं किसी तरह अपनी हैरत को छुपाकर बेंच से उठा और लड़की के साथ उसका पता बताने के लिए कदम आगे बढ़ाए। स्ट्रीट नंबर 5 के सामने के मकान क...