दिल का रास्ता- एक कहानी
(बहुत दिन बाद कोई कहानी हुई है। एक ख़याल था, जो बेचैन किये हुए था, लिख दिया, पेश है।) .................................... ‘ तुम्हारी पिंडलियाँ बहुत खूबसूरत हैं। ’ ‘ क्या बकवास है। ’ ‘ क्यों क्या तुम्हें अपनी पिंडलियों की तारीफ सुनना पसंद नहीं। ’ ‘ अजीब आदमी हो। इतने साल से साथ हो, तुमने कभी मेरे चेहरे की तारीफ नहीं की और अब तुम्हें पिंडलियों की तारीफ सूझी है। ’ ‘ मैंने तुम्हारा चेहरा कभी ग़ौर से नहीं देखा। देखा भी हो तो याद नहीं है कि उस चेहरे में तुम थीं भी या नहीं। आज जब पानी में पैर हिलाते हुए तुम्हारी पिंडलियों पर नज़र पड़ी तो महसूस हुआ कि वह बहुत ख़ूबसूरत हैं। रहा नहीं गया , इसलिए कह दिया। अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मैं अपने बोल वापिस ले लेता हूँ। ’ ‘ नहीं ऐसा नहीं है, तारीफ भला किसे अच्छी नहीं लगती, लेकिन अफसोस तो रहेगा कि जिस चेहरे को मैं आईने में घंटों निहारती रहती हूँ, उसमें तुम्हारी कोई दिलचस्पी नहीं है और अब पिंडलियों में... ’ ‘ नहीं तुम बिल्कुल ग़लत समझ रही हो। मेरी नियत बिल्कुल साफ है, लेकिन यह ज़रूर कहूँगा कि तुम्हारी पिंडलियाँ बहुत ही सुडौल...