... वो माँ थी
देखना मेरी ऐनक से... बीदर ज़िले के बस्वकल्याण डिपो की एक आरटीसी बस कर्नाटक-महाराष्ट्र की ग्रामीण सड़क से गुज़र रही थी। रास्ते में एक गाँव में सवार होने वालों में लगभग पचहत्तर से अस्सी साल की एक महिला भी थी। नौवारी साड़ी में कमर पर चाबियों का गुच्छा लटकाए , हुलिए और हाव भाव से लगता था कि किसी अच्छे खानदान की हैं। उम्र के असर ने चेहरे का रंग कुछ फीका कर दिया था , उम्र के हिसाब से कमज़ोंरी झलकने के बावजूद कद काठी अब भी मज़बूत थी। आम तौर पर यात्रा पर निकलने वालों के हाथ में कोई बैग या थैली ज़रूर होती है , लेकिन इस वृद्धा के पास ऐसा कुछ नहीं था। भीड़ ज्यादा होने के कारण कोई सीट ख़ाली नहीं थी , मैंने अपनी सीट से उठते हुए उन्हें बैठने का अनुरोध किया , लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि वह अगले ही गाँव में उतर जाएँगी। यात्रा का कारण जानने की कोशिश में बड़ा अजीब वाक्य सुनने को मिला। ..वो वहाँ सोया पड़ा है।..वो.. कौन है यह निश्चित रूप से नहीं समझ पा रहा था और सोया पड़ा है... का अर्थ जानने की जिज्ञासा बढ़ी। ....वह मेरा बेटा है और पीकर लुढ़क गया है। ...कहने के अंदाज़ से साफ था कि...