छत्तीस को तिरसठ बनाना ....
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है उनकी ऑग़ोश में सिर हो ये ज़रूरी तो नहीं ख़ामोश जौनपुरी ने जब शेर कहा था , हो सकता है कि वे बहुत दुःखी हों , मायूस हों , महबूब के मिलने की उम्मीद खो चुके हों। दर्द से कराह रहे हों। पता नहीं रात के किसी पहर नींद का ग़लबा उन पर हुआ हो और सो गये हों। उन्हें नींद की पड़ी हो , लेकिन दर्द का क्या , वो कैसे कम होगा। हो सकता है , नींद से कुछ कम हो , लेकिन उनकी(महबूब की , हमदर्द की , हमसफर की चाहे कोई हो जो दर्द बांटने वाला हो उसकी) आग़ोश में सिर होता तो शायद दर्द का एहसास यूँही कम हो जाता और नींद बोनस के रूप में मिल जाती। पिछले स्तंभ में मैंने एक दुर्घटना का ज़िक्र किया था। उसके बाद बहुत सारे अनुभव हुए। अनुभव चाहे मीठे हो , खट्टे हों , कडुवे या तीखे। एक लेखक के लिए उन अनुभवों की याद में अलग ही मिठास छुपी होती है। कहते हैं गुपत मार(अंदरूनी ख़राशें) कुछ देर बाद दर्द देने लगती है। इन खराशों ने दर्द के शिकार एक बिस्तर पर पड़े दो लोगों का आजीब हाल बना रखा है। एक के बाएँ और दूसरे के दाएँ बाज़ू में दर्द है। दर्द से बचने के लिए वैकल्पिक बाज़ू का...