ख़्वाब.. छोटो छोटे
भारत रत्न अबुल फ़ाक़िर ज़ैनुल-आबेदीन अब्दुल कलाम कहते थे कि ख़्वाब देखेें, बड़े ख़्वाब। दुनिया को बदलने के ख़्वाब। वो बड़े आदमी थे। करनी और कथनी में अंतर नहीं रखते थे। उनके सपने बड़े थे और उन्होंने उसको साकार भी किया। वो चाहते थे कि देश के बच्चे भी बड़े ख़्वाब देखें। उनसे प्रेरित होकर बच्चों ने बड़े ख़्वाब देखे भी और कुछ बच्चे बड़े होकर उन्हें पूरा करने में भी लगे हुए हैं, लेकिन हमारा क्या हमारे ख़्वाब तो बहुत छोटे छोटे हैं, वो भी पूरे नहीं होते। यही कि आज का दिन अच्छा गुज़रे, किसी से लड़ाई झगड़ा न हो। न हमारी गाड़ी किसी से टकराए और न किसी और की गाड़ी हमारा नुक़सान करे। दुकान पर अच्छे ग्राहक आयें। धंधा अच्छा हो। ऑफिस में किसी से चख़पख़ न हो। हमसे जलने वालों के हाथ ऐसा कोई हथियार न लगें कि वह अपनी तिकड़मों को हवा दे सके। घर आते हुए जेब में इतने पैसे हों कि बीवी बच्चों और माँ बाप को खुश करने के लिए दुकान से कुछ मेवे ख़रीद सकें। हमारा ख़्वाब यह बिल्कुल नहीं है कि हम ही जीत जाएँ। बस हम हारना नहीं चाहते। चांद तारे तोड़ लाने और सारी दुनिया पर छा जाने का ख़्वाब भी हमारा नहीं है...