मुद्दत के बाद गुज़रे जो उसकी गली से हम
मुद्दत के बाद गुज़रे जो उसकी गली से हम एफ . एम . सलीम किसी गली से गुज़रते हुए क्या कभी पुरानी यादों से मुठभेड हुई है ? हो सकता है कि लंबा अरसा बीत जाने के बाद काफी कुछ बदला - बदला सा नज़र आता हो , लेकिन तिनके भर चीज़ भी दिखा देती है कि क्या कुछ हुआ बीता था। यादें एक के बाद एक सिरा पकड़ते हुए चली आएंगीं। हो सकता है कुछ याद करके लबों पर मुस्कुराहट चली आये या फिर आँखें ही नम हों जाएं - कुछ याद करके आँख से आँसू निकल पड़े मुद्दत के बाद गुज़रे जो उसकी गली से हम यादें चाहे नई हों या पुरानी , मीठी हो या खट्टी। उनका अपनी अहमियत हेती है , उनसे सारी आंधेरी गलियाँ रोशन हो जाती हैं। बशीर बद्र ने तो यादों को उजाला कहा है। अगर किसी गली में ाf़जन्दगी की शाम हो जाए तो उस शाम को रोशन करने के लिए यादों के दीये ही उजाला दे सकते हैं। किसी गली या कूचे से गुज़रते हुए बहुत कुछ याद आता चला जाता है कि कुछ बिगडा - संवरा था। बालकनियों में सूखते दुपट्टे , ज़ुल्फें सवारते ख़ूबसूरत चेहरे और फिर उन्हें देखते हुए किसी के देखे जाने का ड़र। किसी की आरज़ू और जुस्तजू करत...